जब समस्त विश्व (भारत भी सम्मिलित है) मंदी की मार झेल रहा है वहीं उत्तराखंड आबकारी विभाग अपने राजस्व में भारी बढ़त देख रहा है |
कारण ?... राज्य में मदिरा की भारी खपत है |
शराब बिक्री आबकारी विभाग के राजस्व में प्रमुख भूमिका निभाता है | क्योंकि राज्य के पास राजस्व संसाधनों का आभाव है अतः यह भी कहा जा सकता है कि शराब कि बिक्री से ही आबकारी विभाग राजस्व कमाता है | और शराब बिक्री में बढोत्तरी आबकारी राजस्व में प्रत्यक्ष बढोत्तरी करती है |
िम्न लिखित तथ्यों पर गौर कीजिये:इस वित्त वर्ष के लिए आबकारी विभाग द्वारा निर्धारित राजस्व लक्ष्य:______________
501 करोड़ रुपये
इस वित्त वर्ष कि तीसरी तिमाही(सितम्बर-दिसम्बर 2008 ) के अंत तक प्राप्त राजस्व:___
416 करोड़ रुपये
अर्थात बीती तीन तिमाहियों में , प्रत्येक तिमाही में प्राप्त राजस्व:_________________ 138.6 करोड़ रुपये
यदि यह क्रम बरकरार रहा तो इस वर्ष के अंत तक प्राप्त राजस्व:__________________
554 करोड़ रुपये
वह राजस्व जो निर्धारित किए राजस्व से अधिक प्राप्त हुआ: _______554- 501 =
53 करोड़ रुपये
पूर्व निर्धारित एंव असल राजस्व प्राप्ति में बढ़त प्रतिशत: ____________________
11 प्रतिशत
वित्त वर्ष 2007-08 में प्राप्त कुल राजस्व:_____________________________
444 करोड़ रुपये
वित्त वर्ष 2007-08 कि तुलना में इस वर्ष कि राजस्व बढोत्तरी:_________________
25 प्रतिशत
निष्कर्ष:जहाँ पिछले वर्ष मदिरा पर राज्य के लोग औसतन
37 करोड़ रुपये प्रतिमाह व्यय कर रहे थे | इस वर्ष के अंत तक वे
46 करोड़ रुपये प्रतिमाह खर्च कर रहे होंगे |
यदि मोटे तौर पर राज्य कि जनसँख्या को एक करोड़ मान लिया जाय तो जहाँ पिछले वर्ष राज्य का एक व्यक्ति (महिला-पुरूष) मदिरा पर
37 रुपये प्रतिमाह खर्च कर रहा था वहीं इस वित्त वर्ष के अंत तक वह
46 रुपये खर्च कर रहा होगा | लगभग
25 प्रतिशत अधिक |
आबकारी विभाग के अनुसार सामान भौगोलिक संरचना वाले राज्यों जैसे
हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर आदि कि तुलना में
उत्तराखंड के निवासी शराब पर कहीं अधिक व्यय करते है |
हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर राज्य
सराहना के पात्र हैं |
और
उत्तराखंड राज्य को आत्म चिंतन कि आवश्यकता है |
[ ख़बर स्रोत: हिंदुस्तान टाईम्स ]
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