Sunday, 1 March 2020

भारत में मंदी के संकेत | रोज़गार आयु सीमा बेरोज़गार व्यक्ति के लिए कुछ सुझाव


Written by Anil Singh
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भारत में मंदी के संकेत | आने वाला समय रोज़गार के लिए भी मंदा ही रह सकता है | रोज़गार आयु सीमा के किसी भी बेरोज़गार व्यक्ति लिए कुछ सुझाव


आप किसी भी आयु वर्ग के हों, एक बात तो मान ही सकते हैं की भारत में बेरोज़गारी बहुत अधिक है | भारत में बेरोज़गारी का स्तर अमूमन अधिक ही रहता है | पर वर्त्तमान समय में यह बहुत अधिक है | रोज़गार आयु सीमा के भीतर आने वाले हर 100 में से 15 युवा बेरोज़गार हैं | जिनके पास रोज़गार है वह भी या तो केवल आधे अधूरे तौर पर रोज़गार में होते हैं, या वे अपनी शिक्षा के अनुसार नौकरी नहीं पाते हैं | साल में 180 या 240 दिन से कम समय तक अपनी शिक्षा अथवा कुशलता से कम की नौकरी, सही अर्थ में रोज़गार नहीं है | इस बात पर असहमत होने जैसी कोई बात नहीं है |

पिछले कुछ वर्षों से स्वरोज़गार की बहुत चर्चा की जा रही है | स्वरोज़गार एक अच्छा विकल्प है, पर स्वरोज़गार या अपना काम धंदा सबके लिए नहीं है | इसमें न केवल असफल होने की संभावना बहुत अधिक है बल्कि अधिकांश स्वरोज़गारों में जोखिम की भी असीमित सम्भावना होती है | यदि स्वरोज़गार इतना सरल होता तो इस संसार में कृषि छोड़कर, हर कारोबार के क्षेत्र में नौकरी करने वाले लोगों से अधिक कारोबारी होते | कृषि में भी भूमि पर एक परिवार के समस्त सदस्य निर्भर होते हैं | तो यह भी एक तरह से रोज़गार ही पैदा करती है | आज के स्टार्टअप की दुनिया में स्वरोज़गार आकर्षक दिखता है पर विकसित देशों में भी प्रत्येक 100 में से 20 स्टार्टअप अपने पहले साल में ही बंद हो जाते हैं | आप चाहें तो स्वरोज़गार का रुख करें पर इसकी एक नौकरी से तुलना करना बचपना ही माना जायेगा |

भारत में बढ़ती बेरोज़गारी के समय में एक बेरोज़गार युवा या कोई भी बेरोज़गार क्या करे ?

अभी कुछ समय से भारत में मंदी के भी संकेत हैं | आने वाला समय रोज़गार के लिए भी मंदा ही रह सकता है | ऐसे समय में यदि आप रोज़गार आयु सीमा के कोई भी बेरोज़गार व्यक्ति हैं, तो आपके लिए कुछ सुझाव :
  • अपनी कार्यकुशलता का सही आंकलन करें |
  • शीघ्र धनवान होने वाली योजनाओं से बचें |
  • नौकरी दिलाने के झांसे में पड़ कर समय और धन न गवाएं |
  • जोखिम का आंकलन कर, स्वरोज़गार में सोच विचार के जोखिम लें |
  • खर्चे नियंत्रित करें |  
  • हतोत्साहित न हों | आप आजीविका के लिए प्रयास करते रहें |  यदि अर्थव्यवस्था को मंदी में आने कुछ वर्ष लगे हैं तो इसे जाने में भी कुछ समय लग सकता है | 
  • अपना सही आंकलन करें | देखें आप अपनी आयु अनुरूप आर्थिक दृष्टि से कितने आत्मनिर्भर हैं |
  • यदि आप अभी भी आर्थिक अथवा धन की दृष्टि से किसी अन्य पर निर्भर हैं तो सोचें ऐसा क्यों है |
  • आप अपने समय का प्रयोग कैसे करते हैं इस पर भी ध्यान दें |  कहीं आप अपने समय को बेकार विषयों या कार्यों में ख़राब तो नहीं करते | 
  • मोबाइल का प्रयोग केवल जरूरत के लिए करें | 
  •  अपना हित समझें | 
एक उदाहरण --- ऐसा देखा गया है कि  नौकरी आयु वर्ग के युवा, युवतियां बहुत सरलता से धर्म और राष्ट्रवाद की संकीर्ण (छोटी) सोच से प्रभावित हो जाते हैं | यहाँ धर्म का मतलब दूसरे धर्म के लिए असहज होना है | ठीक इसी प्रकार अति राष्ट्रवाद का अर्थ भारतीय सैन्य बालों (फ़ौज इत्यादि) के लिए, देश की सुरक्षा के लिए बहुत सरलता से विचलित हो जाना है | दोनों ही भावनाएं ठीक नहीं हैं | अपने धर्म को श्रेष्ठ मानना गलत नहीं, पर इसका अर्थ यह नहीं की दूसरे धर्म किसी भी प्रकार कम श्रेष्ठ हैं | सब धर्म अपने में श्रेष्ठ हैं | अच्छा हो की हम हर धर्म को उस पर छोड़ दें | सब धर्मों का आदर करें | इसका पहला फायदा यह होगा की आप शांत रहेंगे और जीवन के अच्छे मुद्दों पर ध्यान देंगे | 

इसी प्रकार, देश के सैन्य बलों और देश की सुरक्षा को लेकर व्यर्थ चिंतित न हों | ये विषय भावुक होने के नहीं हैं | हमारा देश आर्थिक रूप से जितना सक्षम है , उससे तुलना करें तो देश अपने सैन्य बलों और उनके परिवारों के लिए उत्तम आर्थिक, वित्तीय, स्वास्थ्य, महंगाई, शिक्षा और सामाजिक संसाधन उपलब्ध कराता है | न केवल सैन्य कर्मियों की अपितु परिवार की भी जिम्मेदारी देश अपने ऊपर लेता है | देश न केवल सैन्य कर्मियों/परिवारों की पेंशन व अन्य सुविधाओं के लिए आजीवन प्रतिबद्ध है, साथ ही देश यह भी निश्चित करता है कि वे सेना में नौकरी के पश्चात् दूसरी नौकरी पाएं |  इस लिए आने वाले समय में भी आप सेना के लिए आश्वस्त हो सकते हैं | रही देश की सुरक्षा की चिंता तो देश के द्वारा अपनी और नागरिकों की रक्षा के लिए ही सेना बनाई जाती है | अतः देश की सुरक्षा को लेकर व्यर्थ चिंतित न हों | 

आप अपने कार्य पर ध्यान दें | अपनी जेबें टटोलें | यदि कमी लगती है तो प्रयास करें | यदि कोई भी व्यक्ति आपको संकीर्ण (छोटी) सोच से प्रभावित करता है, तो देखें की आपकी और उसकी आर्थिक, वित्तीय हालत में क्या अंतर है | यदि है, तो व्यर्थ के विवाद में पड़ने के बजाय अपने जीवन पर ध्यान दें | स्वयं को आर्थिक, वित्तीय अन्य दृष्टि से सबल बनाएं |

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